संसार में तीन मुख्य संसाधन हैं। यानि पहली रिर्सोस बेसिक दूसरी नैचुरल और तीसरी ग्रेट। संसाधनों को जिस महान अर्थशास्त्री और सांख्यिकी-विद् ने वर्गीकृत किया है उनका नाम है, ई.एफ. शुमाकर। उन्होंने मूल भूत संसाधन मनुष्य को माना है, प्राकृतिक संसाधनों में खनिज,जल इत्यादि आते हैं और शुमाकर ने महान संसाधन शिक्षा को माना है। कहना उचित होगा कि आज तीनों ही संसाधनों का जमकर शोषण किया जा रहा है। हम शिक्षा के संदर्भ में ही बात करेंगे। लेकिन उससे पहले ऑथर का संक्षिप्त परिचय देना होगा। अर्नेस्ट फैडरिक शुमाकर एक दौर में जर्मन-ब्रिटिश के बेहतरीन अर्थशास्त्री और सांख्यिकी-विद् रहे हैं और उन्होंने 1950 से 1970 तक ब्रिटिश - नेशनल कोल -बोर्ड को, बतौर मुख्य आर्थिक सलाहाकार अपनी सेवाएं दी। हलांकि उन्होंने कई उपयोगी पुस्तकें लिखी किन्तु उनकी 1973 में लिखी किताब, स्माल ईज़ बियूटीफुल, विश्व-प्रसिद्ध सौ किताबों में से एक गिनी गई। ई.एफ. शुमाकर का जन्म 16 अगस्त 1911 में जर्मन साम्रज्य के बोन शहर में हुआ था और 66 वर्ष की आयु में उनका निधन स्विटज़रलैंड में हुआ।
शुमाकर के अनुसार समुचे इतिहास में मनुष्यों ने धरती के जिस भी भाग पर अपना बसेरा डाला वहां उन्होंने अपनी वृद्धि की और किसी भी प्रकार की संस्कृत की को जन्म भी दिया। मनुष्यों ने हमेशा और हर जगह अपने जीवन यापन और भविष्य में काम आने वाले संसाधन ढूंढें। शुमाकर यह भी कहते हैं कि बेशक सभ्यताएं बनी,उन्नत हुई और ज्यादतर पतनोमुख और फना हुई। हम यहां इस बात पर चर्चा नहीं करेंगे कि इन सभ्यताओं का क्यों और कैसे पतन हुआ? हम सिर्फ इतना ही कहना चाहेंगे की उन सभ्यताओं के पतन और बर्बादी के पीछे कुछ संसाधनों का असफल होना कहा जायेगा। यह भी ठीक है कि अधिकतर उदाहरण ऐसे मिलते है कि उसी ज़मी पर नई सभ्याताओं ने जन्म लिया, लेकिन यह समझ से परे है कि अगर वे भौतिक संसाधन होते तो वे पहले ही मिट चुके होते। प्रश्र यह है ऐसे संसाधन स्वयं में कै से पुन:संगठित होते रहे हैं?
तो ऐसे में पता यह चलता है कि तमाम इतिहास और वर्तमान अनुभव तथ्यात्मक रूप से यह साबित करते हैं कि यह कुदरत नहीं बल्कि मनुष्य है जिसने प्रथामिक संसाधन प्राप्त कराये। अर्थात प्रत्येक आर्थिक उन्निति का महत्वपूर्ण कारक मनुष्य की बुद्धि ही है। वही माना जाता है कि साहस,पुरुषार्थ, नीयत, साकारत्मक-रचनात्मक ता का धमका एक साथ कई क्षेत्रों में अचानक हुआ। यह कोई नहीं जानता कि यह पहले-पहल यह कहां से और कैसे हुआ। तो हमने मौटा-मोटी यह तो समझा कि मनुष्य के जीवन में महान संसाधन शिक्षा ही है। दु:ख इस बात का है कि आज के घोर बाज़ारवादी दौर में शिक्षा ज्ञान से अधिक व्यवसाय व रोज़ी-रोटी कमाने के लिए प्रमुखता से सर्टिफिकेटस्, डिग्रियो, और डिप्लोमास् आदि के माध्यम से ख्ुालेआम बिक रही है। यह अलग बात है कि कुछ सर्टिफिकेटस्, डिग्रियां और डिप्लोमास् डुपलीकेट भी बिक रहे हैं परन्तु उनका भी बाज़ार चल रहा है इस बात से शायद इंकार नहीं किया जा सकता। सामुहिक प्रयासो से समझना यह है कि इस बाज़ार में क्लिष्ट-कल्पित रूप से यह कैसे चल रहा है जिसने निश्चित ही शिक्षा के वास्तविक मायनों को गौण कर दिया है!
संसार में तीन मुख्य संसाधन हैं।