लोकतंत्र बचाने से पहले इसके मूल को  समझना ज़रूरी-पार्ट -4

उपरोक्त शीर्षक की हम चौथी कड़ी लिखने जा रहे हैं। इस कड़ी हम जानेगें कि, 'आर्थिक संवृद्धि,सामाजिक लामबंदी और डेमोक्रेसी,' के बारे में। इससे पहले हमने एक किताब  Social Origins Of Dictatorship and Democracy जिसे  Barrington Moor ने लिखा था का हवाला देकर उस पुस्तक में उल्लेखित कुछ पेचीदिगियों की चर्चा की थी। आज उससे आगे विषय को बढ़ाते हुए लिख रहे हैं। 



एक महत्वपूर्ण सवाल है कि प्र्रजातंत्र फैला क्यों? और क्या यह भविष्य में भी फैलगा? इतना तो ठीक है कि लोकतांत्रिक संस्थानों जन्म विभिन्न व बहुत से कारणों को लेकर हुआ। लेकिन लोकतंत्र के प्रगटीकरण के अनेक कारणों में से एक बहुत अहम वजह या कहें कि केन्द्र रहा आर्थिक बदलाव। माना जाता है कि डेमोक्रेसी का आर्थिक वृद्धि से जुड़ाव की बहुस्तरीय प्रक्रिया रही जैसा कि निम्रोक्त चित्र में व्यक्त किया गया है:


 
फुकूयाम आपनी किताब: POLITICAL ORDER AND DECAY में आगे लिखते हैं कि आर्थिक वृद्धि ने श्रम-विभान के फै लाव के रास्ते से सामाजिक लामबंदी को जन्म दिया और इस सामाजिक जुटाव ने ही बदले में विधि-शासन यानि रूल ऑफ लॉ और ग्रेटर डेमोक्रेसी को जन्म दिया। जबकि अभिजात वर्ग की  परंपरिक  कृषक व्यवस्था ने निरंतर क ोशिश की कि उनकी व्यवस्था में किसी अन्य वर्ग का प्रवेश प्रतिबंधित है। स्थाई लोकतंत्र  केवल उन हालात में उभर सकता है जिसमें नए संगठित ग्रुप कामयाबी के साथ सम्मलित हों और उन्हें राजनीति में भागदारी का अवसर मिले। इसके उलट अगर उन ग्रुप्स को संथागत रूप में भागेदारी का अवसर नहीं दिया जाता तो अस्थिरता और अव्यवस्था घटती होगी ।
 इस संदर्भ में, विचार बहुत ही महत्वपूर्ण हैं,लेकिन उनका संबंध विकास के आयामों में व्यवस्थागत बदलाव से है। उदाहरण के लिए मनुष्य की सार्वभौमिक मानप्रतिष्ठा की गुणवत्ता का विचार सदियों से ईद-गिर्द बना रहा है,  लेकिन स्थिर कृषि-समाज ने कोई विशेष खिंचाव हासिल नहीं किया क्योंकि ऐसे समाजों में कम दर्जे की सामाजिक गतिशीलता रही है। किसानों ने समय-समय पर राजनीतिक यथास्थिति के लिए आंनदोलन और उसको चुनौतियां दी हैं। इसने उनकी वास्तविक भूख-निराशा को   धृणित-अतिक्रमण और  अधिकारों के लिए उकसाया। इस अवधि में  संभवत: अलग-अलग नेता और विद्रोह ने कुलतंत्र में शामिल होने की महत्वकांक्षा जगाई।  ऐसा कभी नहीं हुआ कि उक्त महत्वकांक्षा ने उन्हें क्लास-बाउंड व्यवस्था ने विस्थापित किया हो। यही वजह रही कि वे नेता कभी सच्चें आनंदोलनकारी  भी  नही बन सके।  सामाजिक गुणवत्ता के विचार ने विस्तृत प्ररेणात्मक शक्ति तब हासिल की जब यूरोप के एक हिस्सें में सत्तारहवीं-आठाहरवीं शताब्दी के दौरान बढ़ती पूंजिवादी व्यवस्था ने अभिलेखन सामाजिक प्रणाली आरंभ कर दी थी। आधुनिक पूंजिवाद ने सामाजिक गतिशीलता दोनों यानि पैदा और हासिल की परिणामत: सामाजिक समता क ी मांग ने पहुंच और अवसर बढ़ाए। इस प्रकार  लोकतंत्रिय और विधि-शासन क े जरिए जन हानि की विधि दिशाएं   सामाजिक गतिशीलता से जुड़ दी गईं। विचार अहम थे और उनका कोई भी स्वायत्तता नहीं थी। केवल सामाजिक वर्ग का प्रवक्ता  होते हुए जिससे वे निकले थे न तो एडम स्मिथ और न ही कार्ल माक्र्स यह समझ सके- लेकिन सामाजिक संदर्भ और गंभीर आर्थिक बदलाव को वैचारिक ग्रहणशीलता द्वारा गढ़ा जा सकता है। 
  मध्य-वर्ग,श्रमिक वर्ग, पुराने कुलतंत्र और किसानों  के संघर्ष द्वारा यूरोप में धीरे-धीरे विभिन्न स्तरों में बीते 150 सालों में  डेमोक्रेसी का प्रगटीकरण हुआ। इन सभी ने बारी-बारी से समाज में आर्थिक बदलाव को मूलभूत रूप से गढ़ा। वहीं कार्ल माक्र्स और मूर की संरचना कुछ गंभीर बदलावों के साथ मूल रूप मज़बूत रही। 


 THE LONG ROAD TO DEMOCRACY



डेमोक्रेसी के लम्बे मार्ग के संबंध में फूकूयामा लिखते हैं:
 मध्यकालीन रियासतो क ी सामंतवादी संस्थाओं की संयोगवश उत्तरजीविता 
क ो आधुनिक युग में परिणामत: दायित्व के रूप में देखा गया। मध्यकालीन युग में टैक्सींग अॅथोरिटीज इन्हीं रियासतों में निहित थी जो कि समाज में  कुलतंत्रीय परत के सपंदा मालिकों  का ही प्रतिनिधित्व करती थी। सौलहवीं शताब्दी के अंत में फ्रांस,स्पेन, स्वीडन,प्रशीया,और रशीया में रियासतों शक्तियों और निरंकुशवादी शासन  को  कमज़ोर  करके राजशाही कामयाबी हुई थी। केवल इंगलैण्ड में रियासती ता$कत ने राजशाही  का सामना किया था। बाद में किसान भी 17वीं शताब्दी में लड़ाई के मैदान में तटस्थ रहे। परिणामत: यह गतिरोध 1688-1689 में ग्ैलोरियस रिवोलूशन के दौरान संवैधानिक निपटारे के साथ समाप्त हुआ। जिम्मेदार सरकार क ा मामला सिर्फ यह नहीं  है विपक्षीय पार्टी सरकार को उसकी जिम्मदारी के लिए जब्रदस्त ढंग से दबाव देने का प्रयास करे। यद्यपि मानव इतिहास  में ऐसे आउट ग्रुपस्  हुए हैं जिन समूहों ने संघर्ष करके सत्ता रूढ़ समूहों को एक बाहर किया और फिर जब एक बार कामयाब हुए तो वे एक नए दमनकारी दल के रूप उभर कर सामने आए।
विपरीततया जिम्मेदार सरकार के मायने हैं कि वह दायित्व केऔपचारिक सिद्धांतों की मान्यता के साथ-साथ  व्यापक स्तर पर पब्लिक और विपक्ष की वैधता स्वीकार करे। जॉन लॉक के अनुसार यहां दयित्व अपनी गंभीर भूमिका निभाते हैं। वे आगे व्याख्या करते हैं कि सभी सकरक ारों के अधिकार को दैव्य अधिकार नहीं होते बल्कि उनके  द्वारा नागरिकों  के व्यक्गित अधिकारों की सुरक्षा में निहित होते हैं। जॉन लॉक अनुसार  मुख्य रूप अधिकारों का उल्लंधन करने में सशक्त होती हैं।


He further argued “no government can have a right to obedience form a people who have not freely consented to it;” what we today call legitimacy therefore flowed from the ability of a people to “ choose their government and governors.”  “No taxation without representation” and consent of the governed” were  the animating principal of the Glorious Revolution and of the American Revolution that took place less than a century. The shift in understanding from the  “ rights of Englishmen”( that is, traditional feudal rights) to “natural rights” (universal rights held by all human beings) meant that these new revolutions would never simply be about the displacement of one elite group by another.



हम अपने पाठकों को बता दें कि फ्रै ंसिस फूकूयामा की किताब  POLITICAL ORDER AND DECAY   के अध्ययन से हमने डेमोक्रेसी के बारे अभी तक जितना और जो समझा वो सब हमने आप से साझा किया जिसमें कार्ल माक्र्स,मूर, जॉन लॉक सहित अन्य राजनीतिक विद्वानों के विचारों को भी प्रस्तुत करने की कोशिश की। हलाकि हम समझते हैं कि इस विषय को समेटना इतना सहज नहीं फिर हमने इस कड़ी को जोड़ कर कुल चार कडिय़ां लिखी हैं। संभवत: डेमोक्रेसी को  बेहतर  तरीके समझने के लिए हम अपना प्रयास आगे भी जारी रखेंगे।